नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं / Naat Sarkaar Ki Padhta Hun Main {All Version}

नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं बस इसी बात से घर में मेरे रह़मत होगी इक तेरा नाम वसीला है मेरा रंज-ओ-ग़म में भी इसी नाम से राहत होगी NAAT E SARKAR KI

 नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रह़मत होगी

इक तेरा नाम वसीला है मेरा

रंज-ओ-ग़म में भी इसी नाम से राहत होगी


ये सुना है कि बहुत गोर अँधेरी होगी

क़ब्र का ख़ौफ़ न रखना, ए दिल !

वहाँ सरकार के चेहरे की ज़ियारत होगी


कभी यासीं, कभी ता़हा, कभी वलैल आया

जिस की क़समें मेरा रब खाता है

कितनी दिल-कश मेरे महबूब की सूरत होगी !


हश्र का दिन भी अजब देखने वाला होगा

ज़ुल्फ़ लहराते वो जब आएँगे

फिर क़यामत पे भी ख़ुद एक क़यामत होगी


उन को मुख़्तार बनाया है मेरे अल्लाह ने

ख़ुल्द में बस वो ही जा सकता है

जिस को हसनैन के नाना की इजाज़त होगी


दो-जहाँ में उसे फिर कौन पनाह में लेगा

होगा रुस्वा वो सर-ए-हश्र जिसे

सय्यिदा ज़हरा के बच्चों से अदावत होगी


उन की चौखट पे पड़े हैं तो बड़ी मौज में हैं

लौट के आएँगे जब उस दर से

मेरे दिल ! तू ही बता क्या तेरी हालत होगी !


रश्क से दूर खड़े देखते होंगे ज़ाहिद

जब सर-ए-हश्र गुनाहगारों पर

मेरे आक़ा का करम होगा, इनायत होगी


मेरा दामन तो गुनाहों से भरा है, अल्ताफ़ !

इक सहारा है कि मैं तेरा हूँ

इसी निस्बत से सर-ए-हश्र शफ़ाअ'त होगी



शायर:

सय्यिद अल्ताफ़ शाह काज़मी


नात-ख़्वाँ:

मीलाद रज़ा क़ादरी


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ये नाम कोई काम बिगड़ने नहीं देता

बिगड़े भी बना देता है बस नाम-ए-मुहम्मद


नातें सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रौनक़ होगी

इक तेरा नाम वसीला है मेरा

रंज-ओ-ग़म में बस इसी नाम से राहत होगी


नातें सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रौनक़ होगी


या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह !


या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहा

नूर के मोतियों की लड़ी बन गई

आयतों से मिलाता रहा आयतें

फिर जो देखा तो ना'त-ए-नबी बन गई


या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहा

नूर के मोतियों की लड़ी बन गई


जो भी आँसू बहे मेरे सरकार के

सब के सब अब्र-ए-रहमत के छींटे बने

छा गई रात जब ज़ुल्फ़ लहरा गई

जब तबस्सुम किया चाँदनी बन गई


या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहा

नूर के मोतियों की लड़ी बन गई


क़ुर्बान मैं उन की बख़्शिश के मक़्सद भी ज़बाँ पर आया नहीं

बिन माँगे दिया और इतना दिया, दामन में हमारे समाया नहीं


ये सुना है कि बहुत गोर अँधेरी होगी

क़ब्र का ख़ौफ़ न रखना, ए दिल !

वहाँ सरकार के चेहरे की ज़ियारत होगी


नातें सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रौनक़ होगी


हश्र का दिन भी अजब देखने वाला होगा

ज़ुल्फ़ लहराते वो जब आएँगे

फिर क़यामत में भी इक और क़यामत होगी


नातें सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रौनक़ होगी


या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह !


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